ट्रंप के टैरिफ अमेरिकी उपभोक्ताओं पर उल्टा असर डालेंगे।
कमज़ोर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों के कारण भारी नुकसान होने की आशंका जताई गई है। इस बीच हालात सुधारना बेहद मुश्किल हो गया है। शायद अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए एक नई सुबह ज़रूर आए, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि टैरिफ वार्ताओं में ट्रंप की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है जितना वे मानते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा (करीब 85%) कुछ ही देशों के हाथ में है। ऐसे माहौल में दुनिया को अब अमेरिका की बात हमेशा मानने की ज़रूरत नहीं रही। 21वीं सदी में अमेरिका की वैश्विक वस्तुओं के आयात में हिस्सेदारी 19% से घटकर 13% रह गई है। इसके चलते अब कई देश अमेरिकी मांगों की अनदेखी करने की स्थिति में हैं। The Financial Times ने लिखा है, "इसका मतलब यह है कि राष्ट्रपति ट्रंप की घमंडी नीति अंततः अमेरिका को झुकने पर मजबूर करेगी — एक ऐसा देश जिसने काफी पहले ही दुनिया में वस्तुओं और सेवाओं का प्रमुख उत्पादक होने का दर्जा खो दिया है।"
विश्लेषकों के अनुसार, ट्रंप के टैरिफ का मुद्रास्फीति (महंगाई) पर जो असर पड़ा है, उसका सबसे ज़्यादा बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है। वहीं अन्य देश, जो मांग में गिरावट का सामना कर रहे हैं, ढीली मौद्रिक नीतियों के ज़रिए हालात संभाल सकते हैं। लेकिन अमेरिका के लिए ऐसा करना कहीं अधिक कठिन है। The Financial Times ने निष्कर्ष निकाला, "आख़िरकार वाशिंगटन की नीतियों का सबसे बड़ा नुकसान खुद अमेरिका को ही होगा।"
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ट्रंप की मौजूदा एंटी-इमिग्रेशन (प्रवासन विरोधी) नीतियाँ हालात को और बिगाड़ सकती हैं। ये नीतियाँ अमेरिका की जीडीपी ग्रोथ को प्रभावित कर सकती हैं, महंगाई की एक और लहर को जन्म दे सकती हैं और समग्र आर्थिक गतिविधि को धीमा कर सकती हैं।